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चातुर्मास में आत्मा को जाग्रत करें: मुक्तिप्रभ सागर
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इन्दौर. एक बार एक शेर का बच्चा अपनी मां से बिछड़ गया. वह बच्चा घूमते हुए बकरी पालने वाले के घर चला गया। बकरियों के साथ ही चरने जाने लगा। शेर की मां ने बच्चे की तलाश की. बच्चा बकरियों के साथ दिखा। वह बकरियों की तरह व्यवहार करने लगा। इस पर मां ने जोर से गर्जना की। इस पर शेर के बच्चे ने भी गर्जना की और खुद को पहचाना.
उक्त विचार खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनिराज मुक्तिप्रभ सागरजी ने मंगलवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में चार्तुमास धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि इसी तरह हम भूल गए है कि हमारी भी आत्मा है जिसे परमात्मा से मिलाना है। आत्मा के उत्थान के लिए हमें प्रवचन, सत्संग करना चाहिए, गुरुदेव की वाणी सुनना चाहिए। इससे आत्मा जाग्रत होगी। तब हमें पता लगेगा कि यह शरीर नहीं आत्मा है। चार्तुमास में इसी आत्मा को जाग्रत करना है।
परमात्मा दिखाते है मार्ग
उन्होंने कहा कि व्यक्ति सोचता है कि परमात्मा हाथ पकड़कर उसे मोक्ष की प्राप्ति करवा सकते है, लेकिन परमात्मा प्रेरणा दे सकते है , मार्ग बता सकते है, लेकिन जीवन पथ पर उसे ही आगे बढऩा होगा। जैसे कई आपको खाना मुंह में डाल तो सकता है, लेकिन चबाने काा पुरुषार्थ तो खुद को करना है। स्वामी की वाणी मार्ग दिखा सकती है। साधना, आराधना, तप से हमें परमात्मा मिल सकते हैं.
नीलवर्णा जैन श्वेता बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. आदिठाणा व मुक्तिप्रभ सागरजी प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे।